तो बोल उठेंगी कहानियां मेरी...! तो बोल उठेंगी कहानियां मेरी...!
लोगों से क्या, अब खुद से अंजान रह जाते हैं शीशे में भी हम, नज़र नहीं आते हैं|| लोगों से क्या, अब खुद से अंजान रह जाते हैं शीशे में भी हम, नज़र नहीं आते हैं||
रोटी खा उसने भूख को मिटाया है, सुना है चौराहे का प्रेत लौट आया है। रोटी खा उसने भूख को मिटाया है, सुना है चौराहे का प्रेत लौट आया है।
ये राहें कुछ तो कहती हैं...। ये राहें कुछ तो कहती हैं...।
और मेरी मां भी गुस्से के साथ साथ हँस रही थी अपने बेटे की प्यारी शरारत पर। और मेरी मां भी गुस्से के साथ साथ हँस रही थी अपने बेटे की प्यारी शरारत पर।
पथिक है मुसाफिर, तो पथिक बन के चल तू। पथिक है मुसाफिर, तो पथिक बन के चल तू।